चंदौली।हम भारत के सभी नागरिक यूरोप के लेखकों का इतिहास( गुमराह/ नफरत) पैदा करने वाला पढ़ते हैं।यूरोप के लेखकों ने आर्यों को भारत के बाहर की एक ऐसी जाति बताया जिसने भारत पर आक्रमण कर इस पर अधिकार कर लिया और यहां के मूल निवासियों को जिन्हें उन यूरोप के लेखकों ने (द्रविड़ ,आदिवासी, शुद्र अतिशुद्र आदि नाम दिए) अपना दास बना लिया और समाज में उन्हें बहुत निचले स्तर पर रखा उन लोगों ने यह भी लिखा कि आर्यों की इस नीति का परिणाम भारत की जाति समस्या है।वास्तविक रूप में उपरोक्त कथन और उनके प्रचार का उद्देश्य भारत को अधिक से अधिक कमजोर करना बांटना और जहां तक संभव हो सके दीर्घकाल तक इस पर विदेशी अंग्रेजी शासन बनाए रखना था। इससे इसाई पंथ को भारत में प्रसारित करने का लक्ष्य सिद्ध होता था इसके लिए ईसाई मशीनरी 16वीं शताब्दी ईस्वी से ही अपने प्रयत्नों में लगे हुए थे।यूरोपियन लेखों से बहुत से भारतीय प्रभावित हुए और कहां तक कहे भारत की स्वतंत्रता के महान पुरोधा पंडित बाल गंगाधर तिलक भी आर्यों के उत्तरी ध्रुव की ओर से आया मान बैठे वास्तविक में यह वह भ्रांतियां थी जो भारत में उपनिवेश कायम करने वाले अंग्रेजों में बहुत अंग्रेजों ने बहुत संगठित और सशक्त रूप में फैलाई थी।उनके प्रचार और प्रलोभन से अनेक भारतीय प्रभावित हुए थे।कुछ तो मानसिक रूप से उनके हाथ बिक गए थे ऐसे भारतीय न तो भारतीयता के महत्व को समझने की क्षमता रखते थे और न उन्हें अंग्रेजों के षड्यंत्र यंत्र में सम्मिलित होने में कोई शर्म आती थीlयह भी उन्हें पता नहीं था कि इसका दूरगामी प्रभाव कितना नकारात्मक होगाl भारत में अंग्रेजी राज्य के प्रारंभ में नीति कुशल यूरोपियन महानुभावों ने राज्य मूल को दृढ़ करने के लिए भेद नीति का आश्रय ग्रहण किया था!उसकी सिद्धि के लिए बनाए गए साधनों में एक साधन भारतीय इतिहास की रचना भी था! इसका वर्णन पहले किया गया है यूरोपियन लेखक डॉ कीथ और डॉक्टर मेकड़ा नल रचित ग्रंथ वैदिक इंडेक्स की स्थापना के ऊपर प्रहार करते हुए विद्वान लेखक श्री केशव प्रसाद बाजपेई ने इस ग्रंथ में इसके पीछे के सत्य को बताया है !उन्होंने महाभारत के भीष्म पर्व के अध्याय 10 से उद्धृत करते हुए बताया कि यह भारत इंद्र, वैवस्वत मनु,प्रभु इक्ष्वाकु आयाती अमरीश,मांधाता मुचकुंद ,ऋषभ एल तथा अन्य का स्पष्ट जिक्र किया गया है! महाभारत के श्लोक संख्या 51 में पारसीक देश का होना भारत में ही लिखा गया है इससे ईरान में भारतीय राजाओं का शासन स्पष्ट है उल्लिखित राजाओं में से अधिकांश ऋग्वेद में वर्णित है इससे यह पता चलता है कि ईरान पर भारतीय देशों का शासन था यदि आर्य. ईरान से आए हुए होते तो इनके बेदर्दी ग्रंथ ईरान की स्तुति से भरे होते।परंतु इससे विपरीत मिलता है वह यह सिद्ध कर रहा है कि आर्य सर्वदा से यहीं के निवासी हैं। वास्तविकता यह है कि आर्यों का बाहर से आना केवल कपोल कल्पना है और इसे भारत में उपनिवेश स्थापित करने वाले यूरोपिय नो ने षड्यंत्र के अंतर्गत गढ़ा थाl इससे स्वार्थी तत्वों ने भरपूर लाभ उठाया ब्रिटिश शासन में इस दुष्प्रचार के विरुद्ध सशक्त अभियान छेड़ने के लिए परिस्थितियां अनुकूल नहीं थी इसलिए यह दुष्प्रचार दूर तक अपना प्रभाव जमा ले गयाl भारतीय संस्कृति के विषय में हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया पुस्तक में Thorntion ने लिखा है की निसंदेह समग्र विश्व में हिंदू राष्ट्र ही प्राचीनतम है जब नील नदी के आंचल में पिरामिड खड़े भी नहीं हुए थे जब आधुनिक सभ्यता के स्रोत समझे जाने वाले देश ग्रीस और इटली के प्रदेशों में जंगली जानवर ही निवास करते थे।उस समय भारत एक धनी और वैभव से भरा पूरा राष्ट्र था इसी बात को लेकर विलियम ग्रांट ने अपनी पुस्तक द हिस्ट्री ऑफ सिविलाइजेशन में इस प्रकार लिखा है। जैसे भारत ही मानव जाति की माता है उसी प्रकार संस्कृति विश्व की सारी भाषाओं की जननी है संस्कृत में ही हमारा दर्शनशास्त्र पाया जाता है गणित का भी स्रोत वही है ईसाई पंथ में गड़े आदर्शों का उद्गम भी भारत ही है स्वतंत्रता जनशासन आज सारी प्रथाएं भारत मुल्क होने के कारण भारत ही विविध प्रकार से मानवीय सभ्यता की जननी है lश्रीमती एनी बेसेंट के एक लेख के अंश को . उपर्युक्त पुस्तक में उद्धृत किया गया है_ जो भारत और हिंदुत्व सनातन धर्म पर उनके मत को प्रकट करता है विश्व के विभिन्न धर्मों का अध्ययन लगभग 40 वर्षों. अध्ययन करने के पश्चात मुझे हिंदू धर्म के इतना सर्वगुण संपन्न और आध्यात्मिक धर्म अन्य कोई नहीं दिखा इस धर्म के बाबत जितना अधिक ज्ञान बढ़ता है उतना ही उसके प्रति प्रेम बढ़ता है उसे अत्याधिक जानने का प्रयास करने पर वह अधिकाधिक अनमोल सा प्रतीत होता है एक बात पक्की ध्यान में रखें हिंदुत्व के बिना हिंदुस्तान का कोई व्यक्ति तो नहीं है। भारत में धर्म और कई जातियां हैं तथापि उनमें से कोई भी हिंदू धर्म के ने प्राचीन नहीं है और भारत के राष्ट्रीय के लिए यह आवश्यक नहीं हैं वे जैसे आए वैसे एक दिन चले भी जाएंगे किंतु हिंदुस्तान बना तो रहेगाl परंतु यदि हिंदुत्व ही नष्ट हो गया तो भारत में रही क्या जाएगा? केवल एक भूमि अतीत के श्रेष्ठतम की एक स्मृति l. यदि भारत की संताने ही हिंदुत्व को नहीं अपनाएंगे तो हिंदुत्व का रक्षण कौन करेगा ? भारत की संस्कृति सभ्यता को 5000 वर्षों में सीमित करके दिखाना पश्चिम के लेखकों की बिकी हुई लेखनी और बितानी साम्राज्य को उनके द्वारा मजबूत बनाने का एक षड्यंत्र था जो निरंतर लंबे समय तक चलाया गया भारत की स्वाधीनता के बाद भी यह किसी न किसी रूप में चल रहा है विदेशों से आयातित भाषा विचार सिद्धांत संस्कार रीती रिवाज इसके प्रत्यक्ष प्रमाण है जिसके सम्मुख भारतीय भाषाओं विचारों सिद्धांतों संस्कारों और रीति-रिवाजों का खुला मजाक उड़ाया जा रहा है सत्ता प्रतिष्ठानों में बैठे अधिकांश लोग या तो इसमें सहायक की भूमिका निभा रहे हैं या मौन धारण किए हैं कारण स्वार्थ अंधता है इससे अज्ञानता और धनी होता जा रही है।📝”आर के दिवेदी” राष्ट्रीय अध्यक्ष(आजाद समानता, अधिकार मंच)