Home चंदौली कहा है शिक्षा मे समानता..?

कहा है शिक्षा मे समानता..?

चंदौली।आजाद समानता अधिकार मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने शिक्षा पर सामनाता विषय पर संगोष्ठी रखी जिसमे कार्यकर्ताओ ने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया।देश के शिक्षा व्यवस्था पर निशाना साधाते हुए राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा की जिस देश में 150 वर्ष पूर्व एक भी पुरुष या स्त्री किसी गाँव के अन्दर ऐसा नहीं मिल सकता था, जो पढ़ना लिखना न जानता हो, तथा दो सौ वर्ष पहले भारत वर्ष संसार का सबसे अधिक खुशहाल और सबसे अधिक बलवान देश माना जाता था। आज वह देश दोनों क्षेत्रों में संसार के पिछड़े देशों की श्रेणी में है इसके पृष्ठभूमि की शुरुआत भारत में मुगलों के आक्रमण प्रारंभ होने के बाद शिक्षा के क्षेत्र में समानता के सिद्धांत को छोड़ दिया गया ।तब शिक्षा केवल उच्च जाति के बच्चों के लिए ही सीमित कर दिया गया था। और अछूत शूद्र तथा महिलाओं के लिए सभी प्रकार के शिक्षा के द्वार बंद कर दिए गए अंग्रेजों के शासन के दौरान यह स्थिति और बदतर हो गई अब धर्म जाति वर्ण लिंग तथा संप्रदाय शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार का निर्धारण करने लगे जिसके कारण शिक्षा के अस्तर से समानता पूरी तरह समाप्त हो गया इसके पूर्व प्राचीन वैदिक काल से बौद्ध काल तक शिक्षशिक्षामंच
नता का प्रचलन था गुरु घरों आश्रम से सभी वर्ग तथा जातियों के बालक अपनी योग्यता के अनुसार समान रूप से एक गुरु से एक छत के नीचे बिना किसी भेदभाव के शिक्षा ग्रहण करते थे राज परिवार हो या कुलीन परिवार जनसाधारण के बालकों को आश्रम में कोई अंतर नहीं किया जाता था शिक्षा के द्वार समान रूप से सभी के लिए खुले थे। श्री कृष्णा तथा सुदामा का उदाहरण आज भी हमारे सामने है उस समय भारत सोने की चिड़िया कहलाता था l
मुसलमानों तथा अंग्रेजो ने अपने शासन काल में भारतीय संस्कृति तथा एकता पर कुठाराघात करके छिन्न-भिन्न करके आपसी सौहार्द प्रेम को नफरत में बदल कर जातीय धार्मिक उन्माद बढ़ाकर शासन कर अपना स्वार्थ पूर्ति कर लिया गया। लेकिन स्वतंत्रता के बाद भी हम भारतीय और शिक्षा के कारण पूर्व मानसिकता से उबर नहीं सके स्वतंत्रता के बाद जो भी सरकार बनी शिक्षा के क्षेत्र में काम किया लेकिन किसी समृद्ध राष्ट्र के निर्माण के लिए सबसे जरूरी होता है बिना भेदभाव सभी वर्गों के बच्चों को उनकी क्षमता के अनुसार निशुल्क शिक्षा प्राप्त करना उनका मौलिक अधिकार बनता है तथा निशुल्क शिक्षा प्रदान कराना राज्य . और केंद्र सरकार का संवैधानिक दायित्व है लेकिन तभी संभव है जब तक शिक्षा के क्षेत्र में समानता के अधिकार को कानून बनाकर लागू किया जाएगा भारतवर्ष में असमानता तभी दूर होगा जबकि निशुल्क और सार्वभौम शिक्षा प्रणाली लागू हो इसके लिए सरकार को अधिक से अधिक नए विद्यालय के निर्माण की व्यवस्था करने की आवश्यकता है हमारे देश के 25% बच्चे सरकारी विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं 75% बच्चे प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा प्राप्त करने के लिए मजबूर हैं। जिनके पास पैसा है वहीं प्राइवेट स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं जिनके पास पैसे नहीं है उनके बच्चे योग्य होते हुए धन अभाव के कारण शिक्षा नहीं प्राप्त कर सकते। इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता है चुनाव में वोट हासिल करने के लिए लैपटॉप बांटने के लिए पैसे कहां से सरकार के पास आ जाते हैं? सरकार पर प्राइवेट स्कूलों का प्रभाव इतना अधिक है कि सरकार वादा करके भी इनके ऊपर कोई भी प्रभावी नियंत्रण नहीं रख पा रही है । ठीक हर् एक वर्ष पर फीस बढ़ाना तथा किताबें और यूनिफार्म बदलकर शिक्षा देने की बात, राष्ट्र के प्रति राष्ट्र के प्रति भाव को समाप्त कर देता है और व्यवसाय का रूप ले लिया जाता है। डॉक्टर का लड़का लड़की डॉक्टर इंजीनियर का लड़का इंजीनियर और राजनीतिक व्यक्ति के घर का लड़का विदेशों से शिक्षा धन बल के आधार पर प्राप्त कर रहा है क्या भारत को स्वतंत्र कराने वाले बलिदान देने वाले राष्ट्र भक्तों के प्रति यही सच्ची निष्ठा है ?
वर्तमान मे देश के युवाओं को समर्पित भारत की शिक्षा व्यवस्था ?।वही चंदौली बार ऐशोसियेसन के वरिष्ठ अधिवक्ता धनंजय सिंह ने कहा की अब समय आगया है की शिक्षा के क्षेत्र मे समानता कों लागु किया जा सके जिसे गरीबो के बच्चे भी शिक्षा मे समान रूप से शिक्षा प्राप्त कर सकें,जिसे देश का हर एक नागरिक पढ़ा लिखा हो और राष्ट्र निर्माण मे अपनी भूमिका निभा सके।इस अवसर पर ओमप्रकाश तिवारी,पवन तिवारी,सुरेंद्र कुमार,कृष्ण मुरारी,अरविन्द शंकर पाठक,धनंजय सिंह एडवोकेट, बाबी, देवेंद्र प्रताप सिंह,(दादा) आदि मौजूद रहे।

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