पहले और दूसरे बच्चे के बीच सुरक्षित अंतर रखने में मदद करते हैं अस्थाई गर्भनिरोधक
चंदौली।परिवार नियोजन कार्यक्रम स्वास्थ्य विभाग की प्राथमिकताओं में शामिल है, जिसके लिए समय-समय पर तमाम योजनाओं और कार्यक्रमों को लाभार्थियों तक पहुंचाने की हर संभव कोशिश रहती है| छोटा परिवार, खुशियां अपार। इसी अवधारणा को साकार करने के लिए स्वास्थ्य विभाग परिवार नियोजन के स्थाई और अस्थाई साधनों का विकल्प दम्पति के सामने रखता है। स्थाई साधन के रूप में पुरुष और महिला नसबंदी और अस्थाई साधन के तौर पर पुरुषों के लिए कंडोम और महिलाओं के लिए त्रैमासिक गर्भनिरोधक इंजेक्शन अंतरा, गर्भनिरोधक गोली-छाया, माला, कापर टी- इंट्रायूटेराइन कंट्रासेप्टिव डिवाइस (आईयूसीडी), पोस्ट पार्टम इंट्रायूटेराइन कंट्रासेप्टिव डिवाइस (पीपीआईयूसीडी), पोस्ट अवार्शन इंट्रायूटेराइन कंट्रासेप्टिव डिवाइस (पीएआईयूसीडी) आदि हैं। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार इंट्रायूटेराइन कंट्रासेप्टिव डिवाइस को लेकर महिलाओं में भरोसा बढ़ा है। चाहे वह पीपीआईयूसीडी हो या पीएआईयूसीडी। महिलाएं दो बच्चों के जन्म के बीच सुरक्षित अंतर रखने के लिए इसे अपना रही हैं।
चहनिया ब्लॉक की रीता सिंह ने -पीपी आईयूसीडी को अपनाया है| 24 वर्षीय रीता कहती हैं- “मेरा दो वर्ष का बेटा है|पति दुकान पर काम करते हैं|पहले बच्चे के बाद से ही में शारीरिक रूप से कमजोर महसूस करने लगी, इस लिए पांच-छह वर्ष दूसरा बच्चा पैदा करने की योजना नहीं है।” उन्होंने बताया-घर के नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र पर ही यह सुविधा मिल गई| घर वालों को समझाने के बाद- “मैंने इसे अपना लिया। अब मेरा पूरा ध्यान अपने बेटे और अपनी सेहत पर है। शारीरिक स्थिति के अनुसार ही मैं आगे दूसरे बच्चे के विषय में विचार करूंगी|”
मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ वाई के राय बताते हैं कि आईयूसीडी परिवार नियोजन के दीर्घकालीन अस्थाई साधनों में एक प्रमुख है, चाहे यह पीपीआईयूसीडी हो अथवा पीएआईयूसीडी। पीपीआईयूसीडी के बारे में उन्होंने बताया यह प्रसव के 48 घंटे के अंदर अपनाई जाती है और जब दूसरे बच्चे का विचार बनें तो महिलाएं इसको आसानी से निकलवा भी सकती हैं|अ नचाहे गर्भ से लंबे समय तक मुक्ति चाहने वाली महिलाओं की पसंद में यह शामिल है|
परिवार नियोजन कार्यक्रम के नोडल अधिकारी डॉ संजय सिंह ने बताया कि लाभार्थियों को परिवार कल्याण के बारे में जागरूक करने में आशा कार्यकर्ता और एएनएम महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। ब्लॉक स्तरीय स्वास्थ्य केन्द्रों पर परिवार नियोजन से संबंधित कार्यक्रमों के माध्यम से महिलाओं ने संस्थागत प्रसव के तुरंत बाद पीपीआईयूसीडी को अपनाने में खास दिलचस्पी दिखाई है|एक बार लगने के बाद इसका असर पांच से दस साल तक रहता है|बच्चों के जन्म के बीच सुरक्षित अंतर रखने का यह लंबी अवधि काबहुत ही सुरक्षित और आसान उपाय है|यह गर्भाशय के भीतर लगने वाला छोटा उपकरण है जो कि दो प्रकार का होता है-पहला कॉपर आईयूसीडी 380 ए-जिसका असर दस वर्षों तक रहता है,जो प्रसव के 48 घंटे के अंदर यानि अस्पताल से छुट्टी मिलने से पहले महिला लगवा सकती हैं| दूसरा है- कॉपर आईयूसीडी 375 ए-जिसका असर पांच वर्षों तक रहता है,जो प्रसव के डेढ़ माह के बीच अपनाया जा सकता है|
डॉ संजय ने बताया कि जिले में अप्रैल 2022 से मार्च 2023 के बीच कुल 27017 संस्थागत प्रसव हुए,जिसके सापेक्ष करीब 7773 महिलाओं ने प्रसव पश्चात पीपीआईयूसी को अपनाया। उन्होंने बताया कि जिले में आयोजित 10 से 31 जुलाई तक जनसंख्या स्थिरता पखवाड़ा के दौरान 540 महिलाओं ने पीपीआईयूसीडी और 6448 महिलाओं ने आईयूसीडी को अपनाया|शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया जा रहा है। संदेश दिया जा रहा है कि ‘छोटा परिवार-खुशहाल परिवार’ के नारे को अपने जीवन में उतारने में ही परिवार,बच्चे एवं सभी की भलाई है|योग्य एवं नव दंपति के सामने ‘बास्केट ऑफ च्वाइस’ की सुविधा उपलब्ध है|उनके फायदे के बारे में भी सभी को अच्छी तरह से अवगत कराया जा रहा है| मातृ एवं शिशु के बेहतर स्वास्थ्य के लिए और दो बच्चों के जन्म के बीच कम से कम तीन साल का अंतर आवश्यक है| शादी के दो साल बाद ही परिवार बढ़ाने की योजना बनाएं। उन्होंने कहा स्वस्थ जच्चा-बच्चा के प्रति लोगों को जागरूक करने के साथ ही उन तक उचित गर्भ निरोधक साधन पहुंचाने के लिए हर संभव प्रयास किये जा रहे हैं