टीवी जैसे खतरनाक रोगो पर बात चित मे सकलडीहा बीसी गुप्ता हॉस्पिटल के डा.अजय कुमार गुप्ता ने बताया की टीबी की बीमारी किसी को भी हो सकती है और किसी भी उम्र में हो सकती है। कुछ ऐसे जोखिम कारक होते हैं, जिसकी वजह से किसी व्यक्ति के ट्यूबरक्लोसिस से संक्रमित होने का खतरा ज्यादा हो जाता है।ज्यादातर टीवी का खतरा टीबी से पीड़ित मरीज के संपर्क में रहने से,और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने पर,किडनी से जुड़ी गंभीर बीमारी में,स्टेरॉयड दवाओं का अधिक सेवन करने से, होता है।ऐसे हॉस्पिटल जहां टीबी के मरीज ज्यादा हैं वहां काम करने से होता है।ऐसे हि अन्य कारणों से टीवी होने का खतरा बढ़ जाता है ।टीवी के शुरुआती लक्ष्णो मे वजन घटना,सीने मे दर्द होना, बुखार् रहना,बलगम् मे खुन् दिखना,लगातार खांसी आना, भुख न लगना,कमजोरी लगना आदि संक्रमण के लक्षण होते है।लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों मे ज्यादा तर लोग टीवी जैसे खतरनाक संक्रमण से अनजान बन उसके लक्ष्णों को अनदेखा करते रहते है और संक्रमण बढ़ने का इंतजार करते है जिसे संक्रमण और भयंकर रूप ले लेता है डा गुप्ता ने बताया की शुरुआती लक्षण दिखने पर तुरंत हॉस्पिटल मे जा के सम्पर्क करना चाहिए जिसे डॉक्टर जांच के द्वारा उसका पता लगा सके,टीवी के संक्रमण की जाँच करने के लिए मुख्य रूप से
१-सीने या छाती की एक्स-रे जांच।
२-बलगम या थूक की जांच।
३-ब्लड टेस्ट या ईएसआर टेस्ट।
४-फाइन नीडल एस्पिरेशन ५-साइटोलॉजी (एफएनएसी)।
६-पोलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर)
७-ट्यूबरकुलिन स्किन टेस्ट।जैसे जाँच से टीवी के लक्ष्णों को देखा जा सकता है,और संक्रमण का पता लगाया जा सकता है।
टीवी के मरीजों को खास कर के खान-पान पर विशेष ध्यान देना चाहिए
हरि व् पत्तेदार ताजि सब्जियां, डेरी प्रोडक्ट में दूध दही पनीर ,अंडा, मौसमी फल, फाइबर और प्रोटीन युक्त आहार का सेवन करना चाहिए। खास कर के विटामिन सी वाले फलो को खाना चाहिए।जिसे रोग प्रतिरोधक छमता को मजबूत किया जा सके । ज्यादातर तले भुने और अधिक तैलीय् चीजों से परहेज करना चाहिए। डॉ अजय गुप्ता ने बताया कि टीवी संक्रमण आम तौर पर फेफड़े मे होता है,लेकिन दूसरे अंग जैसे गुर्दे,मस्तिष्क,छोटी ग्रंथिया,पाचन तंत्र,व तंत्रिका पर भी हो सकता है। आजकल ज्यादातर औरतों की बच्चेदानी में भी टी वी के संक्रमण का खतरा देखा जा रहा है। टीबी की बीमारी में मरीज की जांच के बाद डॉक्टर दवाओं के सेवन की सलाह देते हैं। मरीज की गंभीरता के आधार पर इसका इलाज हर व्यक्ति में अलग-अलग हो सकता है। शुरुआत में डॉक्टर मरीजों को एंटीट्यूबरकुलर दवाएं देते हैं। ये दवाएं मरीज में टीबी का पता चलने के बाद दी जाती हैं। टीबी के इलाज में मरीज को ज्यादातर 6 महीने से ले के दो साल तक लगातार दवाओं का नियमित सेवन करना पड़त सकता है। गंभीर मामलों में मरीजों के इलाज के लिए डॉक्टर एडवांस ट्रीटमेंट का सहारा ले सकते हैं। मरीजों को टीवी के दवा को नियमित खाना आवश्यक होता है। अगर गलती से भी एक दिन भी दवा खाने मे लापरवाही आगयी तो इलाज लम्बा समय तक चल सकता है। जब तक संक्रमण पुरी तरह ख़त्म न हो जाये तब तक डॉक्टर की देख रेख मे रहना चाहिए और बिच बिच मे डॉक्टर से परामर्श लेते रहना चाहिए ।टीवी जैसे खतरनाक संक्रमण को रोकने के लिए जागरूकता होना आवश्यक होता है ! अगर आस पास टीवी के मरीज हो तो मास्क लगा कर जाना चाहिए, टीवी मरीज के तौलिया रुमाल विस्तारा आदि को प्रयोग मे नहीं लाना चाहिए,टीवी के मरीज के थूकने खासने ,छिकने से भी टीवी का वैक्टेरिया स्वांस नली से फेफड़े तक पहुंच सकता है ऐसे मे सावधानी बर्तनी चाहिए और मरीज से मिलते समय मास्क लगा कर मिलना चाहिए फिर हाथ मुह साबुन से अच्छी तरह धोना चाहिए।।
डा अजय कुमार गुप्ता (एम डी मेडिसिन,कानपुर विश्वविद्यालय)